बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

कांचे का खेल...!!!


बड़ी आँड़ी तिरछी रास्तों में...
बिछी हैं सकरी गलियाँ...!!!

हर मोड़ पर दस्तक देती...
अलसाई साँझों की बालियाँ...!!!

सूरज ऐंठकर बैठा दूर...
बयार पकड़ी हैं डालियाँ...!!!

कांचे के इस खेल में अक्सर...
बदल जाती हैं गोलियाँ...!!!

पकड़ भाग रहा सब मंजर...
जैसे ब्याहे जा रही डोलियाँ...!!!

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