बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

मंगलवार, 11 जुलाई 2017

पास

जो पास नही था अब आसपास कहीं,
पल से पलकों में समा जाता है कहीं।

दूरियां ठहरी उतनी बड़ी पर कहने को,
दिल की दवातों से लिखा जाता है कहीं।

दुवाएं अक्सर ढूंढती दो रूहों की कोटरें,
रात की अज़ानों में सुना जाता है कहीं।

मिटता नहीं वजूद किसी शख्शियत का,
राख के ठिकानों से बुना जाता है कहीं।

- खामोशियाँ -२०१७

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